गीताएक दिव्य प्रेरणा

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श्री कृष्ण द्वारा गीता के ज्ञान में जीवन की परम शांति, लौकिक तथा पारलौकिक कल्याण का चिंतन समावेशित है। गीता का सार्वभौमिक चिंतन गण होते हैं हुए भी जीवन का स्पर्श मार्ग प्रदर्शन करता है। भक्ति योग, ज्ञान योग और कर्म योग की त्रिवेणी इस पावन गीता में मानव जीवन से संबंधित दुखों और समस्याओं का समाधान निहित है। जीवन पथ पर बढ़ते हुए प्रत्येक मानव के जीवन में ऐसी विकट परिस्थितियों उपस्थित हो जाती हैं, जिनसे वह हताश, निराश तथा दुखी हो जाता है। गीता का निष्काम कर्म का सिद्धांत मनुष्य को निराशा में भी कम करने की प्रेरणा देता है। गीता का चिंतन मनुष्य को कामना तथा फलाशक्ति का त्याग करके निरंतर कर्तव्य कर्म करने का संदेश देता है। इसी सिद्धांत के अनुसार अनुगमन से मनुष्य सुख-दुख के विक्षोभ से ऊपर उठ जाता है।
सुख-दुख, लाभ-हानि, मान-अपमान, निंदा- स्तुति में समाभाव रहकर मन को संतुलित रखना गीता की ऐसी दिव्या शिक्षा है, जो जीवन में भटकते मानव का मार्गदर्शन करती है। वर्तमान समाज में विशेष कर युवा अपने जीवन में छोटी-छोटी समस्याओं से परिचित होकर निराशा और हताशा के घोर अंधकार में चले जाते हैं। गीता में वर्णित कर्म योग आज की युवा पीढ़ी के लिए विशेष रूप से अनुगमन करने योग्य हैं।
श्री कृष्णा तथा अर्जुन का संवाद मानव जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के मानस में हो रहे अंतद्वंदों का भी प्रतीक है। अर्जुन के मन में जो संघर्ष पैदा हुआ वही तो हर व्यक्ति के मानस में चलता है। भीतरी संघर्ष के ऐसे समय में मनुष्य का आत्मा निर्मल पड़ जाता है। गीता में वर्णित श्री कृष्ण का चिंतन जीवन की ऐसी परिस्थितियों में मनुष्य को दिव्या सांत्वना प्रदान करता है। गीता में वर्णित शाश्वत प्रेरणा तथा सिद्धांत संपूर्ण विश्व के लिए कल्याणकारी है। आध्यात्मिकता तथा दर्शनिकता से परिपूर्ण गीता के उपदेश सार्वभौमिक तथा सर्वकालिक हैं।
रामकुमार राय शिक्षक

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